प्यार

आजकल प्यार में पड़ने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है, उसी तीव्रता से उस प्यार के ख़तम होने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. आज प्यार हुआ, और कल खतम! अब बताइये, प्यार न हुआ, धनिया मिर्ची हो गया। हर सब्ज़ी में डाल दो । मतलब समझे? हम आज कल इतनी जल्दी प्यार में पड़ जाते है कि जब तक उसका एहसास हमें ख़ुशी दे पाए उस से पहले ही दम तोड़ देता हैं।
कुछ साल पीछे अगर जाए, तो सिर्फ ये बताने में की हम पसंद करते है, एक आधा साल तो यूँ ही निकल जाता था, पसंद नापसंद जानते जानते प्यार पनपता था, समय लेता था अपनी जड़ें मज़बूत करने के लिए। मुझे लगता है कि प्यार पहली नज़र में हो ही नहीं सकता, जो पहली नज़र में हो जाए वो बाहरी सुंदरता की तरफ आकर्षण होता हैं, हाँ पर ये ज़रूर है की कई बार ये आकर्षण प्यार की तरफ की पहली सीढ़ी बन जाता है. वो बस स्टॉप खड़े होकर किसी का इंतज़ार करना, और फिर सिर्फ चुप चाप चोरी से सिर्फ देखना, एक लंबा रास्ता होता था, जानने समझने का। शायद यही वजह भी थी की रिश्ते निभाए भी जाते थे और उनमे एक आदर भी होता था एक दूसरे के प्रति और अब, अब तो सुबह प्यार हो जाता है, दोपहर तक उम्र भर निभाने का रिश्ता, शाम तक झगडे और रात होते होते प्यार ख़तम। प्यार सिर्फ ख़तम हो तो भी ठीक है, पर ये प्यार तो नफरत बन जाता है। वही बातें जिनसे प्यार हुआ था, वो बातें अचानक बुरी लगने लग जाती हैं . क्या वाकई प्यार का विपरीत नफरत होता है? क्या जिसे आप अब प्यार नहीं करते या महसूस नहीं करते क्या उनसे इतनी जल्दी नफरत हो जाती है? क्यों उनकी हर बात पर गुस्सा आने लगता है, जैसे , जो तू पसंद तो तेरी हर बात पसंद, जो तुम नहीं पसंद तो तेरा कुछ नहीं पसंद। पर ऐसा नहीं होता है, वास्तविकता में प्यार ख़त्म यानी परवाह ख़तम, फिर सामने कुछ भी हो, आपको कोई फर्क नहीं पड़ता, और अगर फर्क कभी पड़ा ही नहीं तो प्यार कैसा?
प्यार कितना सस्ता हो गया है, जो हम इससे कही भी इस्तेमाल कर लेते है। पहले तो पसंद भी आपकी खुद की होती थी, अब तो हम पसंद भी वो करते है जो दुनिया को अच्छा लगता है। आजकल तो उन्हें भी प्यार हो जाता है जिन्हें इसे लिखना तक नहीं आता। पहले जो प्यार नजरो की उलझने से होता था अब वो व्हात्सप्प और फेसबुक पर लाइक्स और कमेंट्स से होता है। ज़रा सोचिये, झगडे की वजह ये है की तुमने मेरी फोटो पर वो दिल वाला लाईक नहीं बनाया, तुम्हे मुझसे प्यार नहीं हैं। तुमने फेसबुक पर इन अ रिलेशनशिप विथ मी क्यों नहीं डाला हुआ हैं, तुम मुझे दुनिया से छुपा रहे हो और पहले तो जो छुपाया न गया हो दुनिया से वो प्यार ही कहा था। अब कोन समझाए इन लोगो को, मोती की कीमत ही इसलिए है क्युकी वो सीपियो में छुपा सुरक्षित रहता है, अगर रेत के किनारे खाली सीपियों की तरह मिलने लगा तो उसकी कीमत क्या रह जाएगी? प्यार जैसा एहसास समय मांगता है, जब समय होता है तो वो खुद ही सीपी से निकल कल बहार आजाता है। पर समय ही तो नहीं दे रहे इसे हम। मिटटी का बर्तन बनाते वक़्त क्या हम गीली मिटटी में ही उसमे पानी भर देते हैं? नहीं न, तो प्यार को समय क्यों नहीं देते ?लोग कहते है की देश में असहिष्णुता बढ़ रही हैं, देश का तो पता नहीं, पर प्यार में बढ़ ही रही है।
प्यार २ दिन का और उम्मीदे बांधते है उसमे उम्र भर की। और फिर उन उम्मीदों के टूटने की पीड़ा अलग। अरे भई , किसी और पर क्या आरोप लगाओ तुम्हे दुखी करने का जब तुम ही ने किसी से बेफिज़ूल सी उमीदे बांध दी? वैसे भी प्यार का वो वजूद जो बेहद ,बेहिसाब, बेइन्तहा होता था, अब तो दिखता ही नहीं हैं। मजाक बना दिया हैं। मन भर कर बैठे है, और कहते है की मन नहीं भरता।
प्यार को इतना सस्ता मत बनाओ, इसे समझो, पनपने का वक़्त दो, इतनी आसानी से कैसे कोई कह देता है की प्यार हो गया है किसी से? प्यार अपने आप में एक समर्पण मांगता है, ये वो दरिया है जिसमे अच्छे अच्छे डूबते हैं, इसे शब्दों में कैसे सीमित कर सकते है? ये दिनों में कैसे नाप सकते है? प्यार होता तो एक ही बार है, ये सच है, क्यों की जो दूसरी बार होता है उसमे हम पहले की छवि ढूंढते रहते है। मैंने वाकई प्यार को देखा है, समझा हैं, जिन्हें होता है उनकी तकलीफ भी जनता हूँ, अक्सर सुना है की किसी के जाने के बाद से मन का एक कोना खाली सा हो जाता हैं, तो ठीक है न, सब कोने भरे रहेंगे तब भी तो घुटन होती हैं न, उस खाली जगह को भी अपना लो, और सिर्फ उसे भरने के लिए किसी से जुड़कर उसे प्यार का नाम मत दो। समय दो खुद को, और प्यार करो खुद से! एक जंगली फूल, जंगल में कितने आभावो में, मुश्किलों में, बिना रखरखाव भी कैसे खिल उठता है, बस वही, हम खुद में खिलना होगा, दुनिया से अपने हर दर्द तकलीफ से ऊपर उठाना होगा। वैसे भी दुनिया में सिर्फ चमक दिखती है, उसके पीछे का संघर्ष नहीं।
कभी कभी लगता है की प्यार सिर्फ इसीलिए कर रहे है लोग क्युकि दुनिया में सब प्यार करते है ,
प्यार हिस्सा है ज़िन्दगी का, ज़िन्दगी नहीं।
प्यार ज़रूरी है पर अनिवार्य नहीं।
जिस 4 दिन को प्यार की हकीकत समझते है वो भ्रम होता हैं, और फिर उसी भ्रम की मोहजाल में फंस कर हम ज़िन्दगी से निराश हो जाते हैं।
हर वक्त जिन्दगी से गिले शिकवे ठीक नही ,
कभी तो छोड़ दो इन कश्तियाँ को लहेरो के सहारे ।🙏

#Nilesh

रेप – एक गन्दी सोच

दो स्तन एक वेजाइना और पेनिस शायद इन्ही के होने से रेप होता है।

नहीं स्तन रेप का कारण नहीं ही सकते. जिन छोटी छोटी बच्चियों के स्तन नहीं होते उनका भी रेप ही जाता है.

फिर तो इस वेजाइना के कारण ही रेप होते है. नहीं! child abuse के कितने केस हैं जहा लड़को(baby boy) के रेप होते है। वहा कोई वेजाइना नहीं होती.

यानि रेप पेनिस के कारण होते है.
लेकिन कई हॉस्टलस् और जेल के कितने किस्से सुने है जहा लड़को के रेप होते है। यानि जिनके पास पेनिस है उनका भी रेप होता है। और अगर रेप सिर्फ पेनिस के कारण होते तो गैंग रेप/ रेप के बाद लड़की के शरीर में सरिये कंकर कांच(दिल्ली/रोहतक की घटना,और ऐसी हज़ारो न रिपोर्ट होने वाली घटनाएं) क्यों डालते.

यानि रेप पेनिस वेजाइना (शरीर की संरचना) के कारण नहीं होते।

रेप उस मानसिकता के कारण होता है जो लड़की की शर्ट के दो बटनों के बीच के गैप से स्तन झाँकने की कोशिस करते है. जो सूट के कोने से दिख रही ब्रा की स्ट्रिप को घूरते रहते है. और औरत की स्तन का इमैजिनेशन करते है. जो स्कर्ट पहनी लड़की की टाँगे घूरते रहते है। कब थोड़ी सी स्कर्ट खिसके कब पेंटी का कलर देख सके। पेंटी न तो कुछ तो दिखे।

जो पार्क में बैठे कपल्स को देखकर सोचते है काश ये लड़की मुझे मिल जाये तो पता नहीं मैं ये करदु मैं वो करदु…
वो मानसिकता जब एक दोस्त दूसरे से कहता है – क्या तू अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ रात में रुका और तूने कुछ नहीं किया, नामर्द है क्या.?!

रेप सिर्फ गन्दी मानसिकता के कारण होता है.जहाँ औरत सिर्फ इस्तेमाल का सामान है. इंसान कतई नहीं……

कुछ अभद्र भाषा का उपयोग किया गया है, बुरा लगा हो तो माफ़ कीजिएगा !

वो बस वाली लड़की

बस का सफ़र बड़ा ही मजेदार होता है। हाँ हर बार तो नहीं पर कभी कभी इतना की वो हमारे दिलो-दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ देता है। हा मुझे कुछ ज्यादा पसंद नहीं है , बस में यात्रा करना !

एक ऐसी ही बस यात्रा मेरी भी थी। मै अपने शहर से पातेपुर जा रहा था। मेरी ट्रैनिंग चल रही थी | मै जल्दी से बस-अड्डे की तरफ भागा। माँ के तिलक करने और दही-चीनी खिलाने की रस्म निभाने में मुझे पहले ही देर हो चुकी थी। अब हमारी माँ हमारी इतनी परवाह जो करती है, अपने बेटे को ऐसे कैसे जाने दे देती। जैसे तैसे मै बस-अड्डे पहुंचा। देखा तो एक बस कड़ी थी और कंडक्टर अपनी फटी आवाज़ में पातेपुर पातेपुर चिल्ला रहा था। खैर मै टिकट लेकर बस के अन्दर पहुंचा। एक ही सीट खाली थी, वो भी एक सुन्दर सी कन्या के साथ वाली। देख के मन गद-गद हो उठा, फिर भी अपनी ख़ुशी को दबाते हुए मै अपना सामान ऊपर टिका कर खुद सीट पर टिक गया। मन में एक दबी से मुस्कराहट उच्छालें मार रही थी। उसका ध्यान तो बस खिड़की के बाहर कपडे के दूकान में टंगे एक पर्स पर था। बहुत मिन्नतें करने के बाद बस को आगे बढाने का कार्यक्रम सुरु हुआ। बस अपना पूरा जोर लगाते हुए,चीखते-चिल्लाते हुए आगे बढ़ने लगी। कुछ दूर बस चली ही थी की उसे रुकना पड़ा। कुछ अतरंगी से लोग ऊपर चढ़े। सामने ही आ के खड़े हो गये। मुझे क्या लेना था मेरी निगाह तो उसके चेहरे के दर्शन करने को लालायित थी। उसका ध्यान मेरी तरफ गया, शुक्र है खुदा का। मैंने अपने अन्दर की सारी ताकत झोकते हुए उस से पूछे “आप भी पातेपुर जा रहे हो?”। उसने हाँ में सर हिलाया। मेरे अन्दर की हिम्मत बढ़ी, मैंने पूछा “आप का नाम क्या है?। उसने मुझपर एहसान जताते हुए कहा “रेखा”। बातों का सिलसिला चलता रहा, बस भी चलती रही। इसी बीच एक स्टॉप आ गया, मेरे बगल की सीट खाली हुई। चार पूर्ण रूप से थके-हारे लोग ऊपर आये। मेरे बगल की सीट पे बिराजमान हो गये। पर उन्हें सारी सीटें साथ में चाहिए थी सो कंडक्टर ने आ के हम दोनों से गंभीर रूप से कहा” भैया आप दोनों पीछे चले जाइए न, चूँकि इनकी तबियत खराब है तो इन्हें साथ में बैठना है”। बीमारी की बात सुन हम तरस खा के पीछे चले गए। बस एक बार फिर आगे बढ़ी। हमारी बातो का सिलसिला भी बढ़ता गया। हमारी अच्छी-खासी दोस्ती हो गयी थी। मैंने सोचा चलो एक दोस्त बन गया। ठंडी हवाओं के कारण उसे नींद आने लगी, वो हमारे कन्धों पर ही सर रख के सो गयी। एक बार फिर से मन में लड्डू फुटा। अभी उसका सर हमारे कन्धों पर अच्छे से पहुंचा भी नहीं था की एक बार फिर से बस रुकी, कुछ मरियल से लोग फिर नज़र आने लगे। हरकतों से मुझे अंदाज़ा हो गया की ये भी बीमार आदमी पार्टी की सदस्य हैं। एक बार फिर से कंडक्टर का निशाना हम बने। इस बार हमसे हमारी सखी के साथ बिलकुल पीछे जाने की गुजारिश की गयी। झल्ला के हमने चिल्ला के बोला “अरे भाई बस चला रहे हो की एम्बुलेंस। कहाँ से इतने सारे बीमारों को पकड़ लाये हो”। लड़की के कहने पे हम शांत हो के पीछे चले गए। हमारी बाते फिर से आगे बढ़ी हमने पूछा “फेसबुक यूज़ करती हो” उसने कहा “हाँ”। हमने फटाफट फ़ोन निकाल के उसको फ्रेंड-रिक्वेस्ट भेजा। उसने भी उसी गति से उसे स्वीकार किया। हमलोग पातेपुर पहुँचने वाले थे। हमने सोचा की अब फेसबुक के भरोसे बैठे तो नहीं रह सकते ना, सो क्यों न उस से उसका फ़ोन-नंबर लिया जाए। हमने अपने अन्दर की समूची ताकत झोंक के उस से उसका नंबर मांगने की हिमाकत भी कर डाली। उसने धीरे से हमारी तरफ अपना चेहरा घुमाया, अपनी आँखों को मेरी आँखों के अन्दर झांकते हुए बिन बोले ही ऐसे भाव जताए जैसे मैंने उस से उसका नंबर नहीं उसकी दोनों किडनियां मांग ली हो। उसी क्षण हमें हमें अहसास हुआ की कैसे एक औरत दुर्गा और काली का रूप लेती होंगी। मैंने धीरे से अपना सर दूसरी तरफ घुमाया और उधार ही छोड़ दिया। उसने फिर कंधे पे थपथपाया और अपना फ़ोन मेरे हाथ में देते हुए कहा इस से अपने नंबर पे फ़ोन कर लो। एक पल को ऐसा लगा जैसा वो अपना नंबर नहीं बिल गेट्स की सारी सम्पति मेरे नाम कर रही हो। मैंने उसके फ़ोन से खुद को ही फ़ोन किया, धीरे धीरे चीखता हुआ मेरे मोबाइल गाने लगा “कैसे मुझे तुम मिल गयी, किस्मत पे आये न यकीं”। मैंने फ़ोन कटा और उसका नाम अपने फ़ोन में “बस वाली” के नाम से सेव कर लिया।धीरे धीरे बस चरमराते हुए बस रुकी। सभी धीरे-धीरे उतरे। मै भी उतर के अपने घर को जाने लगा की उसें पीछे से आवाज लगायी ”फ़ोन करते रहना’। मैंने हाँ में सर हिलाया और आगे बढ़ता चला गया। बस इतनी से थी मेरी बस की यात्रा।

#nilesh

सफेद साड़ी :- एक विधवा की कहानी

😢 सफेद साड़ी :- एक विधवा की कहानी 😢

उजड़ गई मांग उसकी,
सूनी हो गई उसकी कलाई,
कल ही ब्याह कर आई थी जो,
आज बनन गई विधवा वो….
बिखर गए उसके सपने,
टूट गए हर ख्वाब है,
शायद उसकी जिंदगी के,
बुझ गए हर चिराग है…..
पाया था जिसने आशीर्वाद सदा सुहागन का,
शायद ये आशीर्वाद ही दे गया खिताब उसको अभागन का….
कल तक लाल जोड़ा पहना था जिसने,
आज साड़ी सफेद हो गई,
शायद उसकी किस्मत दो पल जागकर,
उससे रूठ कर सो गई….
कैसी विडंबना हैं, कैसी विपत्ति हैं,
कल तक जो आंखों का तारा थी,
आज कैसे वो कुलच्छनी बन गई….
क्या उसका कसूर था, क्या उसकी ख़ता थी,
शायद उसकी ये खुशियां खुदा को भी मंज़ूर ना थी…..
कल ही आई थी वो बैठ कर डोली में,
आज मेहंदी भी सूख ना पाई थी,
ना जाने कैसी ये उस घर से विदाई थी….
टूटा था पहाड़ उस पर, दुखों का सैलाब आया था,
कल तक जिसने शादी का जोड़ा पहना,
आज सफेद साड़ी ही उसका पहनावा था……!

ना जाने क्यों आज भी हमारे देश मे औरत के विधवा होने पर कुलच्छनी, अभागन जैसे खिताब दिए जाते हैं…..
किसी की ज़िंदगी या मौत किसी औरत के हाथ मे नहीं हैं…..!
हमे भी इस बात को समझना चाहिए…..
चाहे वो नवविवाहिता हो या बुज़ुर्ग सुहागन, विधवा होने पर दोनों के दिल मे बहुत दर्द होता हैं…..!

बलात्कारियो का बलात्कार, अब क्यों ना हो?

👇बलात्कारियो का बलात्कार, अब क्यों ना हो?👇

हवस मिटाने के लिए जो जाल बिछाये रखते है
उन हब्शियो की हवस का ईलाज,अब क्यों ना हो?
कब तक लूटते रहेंगे दरिंदे इज्ज़त-ए-आबरू
बलात्कारियो का बलात्कार, अब क्यों ना हो?

नज़रो से नोच डालते है जिस्मो को जो अंदर तक
उन आँखों में दहकते अँगारे, अब क्यों ना हो?
जिन हाथो से करते है इज्ज़त नंगी मासूमों की
उन हाथो में जख्म गहरे, अब क्यों न हो ?

फैंककर तेज़ाब जिस्मो पर जो बहादुरी दिखाते है
उनके जिस्मो को भी एहसास इस दर्द का, अब क्यों ना हो ?
तारीख़ पर तारीख कब तक मिलेगी अदालतों से हमे
इस मुद्दे की मोके पर सुनवाई, अब क्यों ना हो?

मुँह उठायें कब तक देखोगे सरकारों की तरफ
खुद की हिफाज़त खुद करने का प्रण,अब क्यों न हो?
कितनी देर रहोगी बनकर अबला कमजोर सी तुम,
तेरे पास भी रानी लक्ष्मीबाई सा फौलादी हौसला, अब क्यों ना हो?

क्यों जियें ख़ौफ़ में बेटियां या माँ-बाप उनके
“Nilesh” अँधेरी गलियां भी बेख़ौफ़, अब क्यों ना हो?
हे खुदा ! शुद्धता अदा कर सोच में सबकी
हर नारी का दिल से सम्मान, अब क्यों ना हो ?

#Nilesh

ससुराल से मायका

ससुराल से मायका

रौनक थी जिनसे जिन्दगी में वो सब खो गई
शादी करके पिया जी तो मिले पर सहेलियाँ खो गई

जिम्मेदारियां बढ़ गई,नादान से समझदार हो गई,
बचपन की यादें, सखियों संग बातें , किशोरीपन की सारी चंचलता खो गई

नया घर, नए लोग नई दुनिया मिल गई
माँ का प्यार, पिता का दुलार, भाई की शरारते खो गई

घर गृहस्थी में जिन्दगी सुबह से शाम व्यस्त हो गई
वो हर बात पे रूठना वो बेवजह की चिल्लाहट खो गई

जीन्स में रहने वाली साड़ी पहनना सीख गई
वो चंचल सी शोखी घूंघट में कहीं खो गई

सपनो का राजकुमार, रोमांटिक राते तो मिल गई
वो बाबुल का आँगन,बेफिक्री की नींद खो गई

सब्जी भाजी का भाव करना,पैसे बचाकर घर चलना सीख गई
बेवजह के ख़र्चे, बेवजह की शॉपिंग करने वाली खो गईं

एक घर से पराई हुई और एक की अपनी हो गई
“निलेश” चीज़ें और भी बहुत मिली और बहुत सी खो गई ..!

Balaatkariyon Kee Shikayat Na Karo Balaatkariyon Se…

⬇️⬇️⬇️⬇️😫😓⬇️⬇️⬇️⬇️
Na Bujha Too Battiyan, Na Jala Too Mombattiyan…
Jhank Apne Andar Ek Baar, Dekh Kahan Hain Galtiyan……

Kahan Gaye Cheer Badane Wale Bhagwaan…
Kahan Gaye Asmat Bachane Wale Krishna Mahan…
Roj Roj Hote Cheer Haran Se..
Kya Kam Pad Gaya Unke Kapdon Ka Thaan…

Aaj Yahan Kal Wahan Hahakaar Hua..
Aaj Iska Kal Uska Balaatkaar Hua…
Chood Do Ginna Ab Unglion Pe…
Aaj Bahar To Kal Ghar Mein Shikaar Hua…

Kuch Tv Ka To Kuch Filmon Ka Haath Batate Hain…
Kuch Ladkiyon Ke Pehnaave Ka Dosh Batate Hain…
Ye To Tarika Hai Nimn Maansikta Ko Chipane Ka Varna…
Kahan Log Apne Ko Bhediya Batate Hain…

Jo Kal Tak Ganda Vichaar Tha Aaj Charcha-E-Bazaar Hai…
Jo Kal Tak Chupa Tha Aaj Naachta Sare Baazaar Hai…
Badta Hee Jayega Ab Ye Na Rukega..
Jo Kal Tak Nazar Mein Tha Aaj Sasharir Tayaar Hai…

Pighalta Hai Mom Aur Jalta Hai Dhaga…
Betiyon Ka Baap Rehta Hai Poori Raat Jaaga…
Koun Jane Fir Kiski Beti Ke Liye Jalegi Mombatti…
Kare To Kya Kare Vo Bechara Abhaga….

Kuch To Maa Kee Kokh Mein Aansuon Tale Dab Gayin…
Bachi Jo Vo Vehshi Darindo Kee Bhent Chad Gayin…
Aadhi Rehti Hain Zindagi Bhar Dari Sehmi…
Baaki Aadhi Dahez Kee Aag Mein Zinda Jal Gayin…

Koun Jaane In Paapiyon Kee Aatma Kahan Soti Hogi…
Na Ho Kisi Kee Behan Beti, Maa Jarur Hoti Hogi…
Are Ye Neech Harkat Karne Walon Sun Lo…
Koi Roye Na Roye Tumpe Tumhari Maa Jarur Roti Hogi…

Balaatkariyon Kee Shikayat Na Karo Balaatkariyon Se…
Kya Hoga Sadak Pe Khade Pradarshankariyon Se…
Aage Bad Ke Khud Taang Do Soo li Pe Sabko…
Mat Maango Bheekh In Bhikhaariyon Se……..
#Nilesh