शिवभक्त’ हमेशा कहलाऊँ !

नसीर तुरबी ( वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थीवो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी ) गज़ल हिंदी में ।

एक दूसरे के लिए जीना ।

मैंने नहीं देखा है कभी पापा को
माँ के लिए गिफ्ट खरीदते देते हुए

और न ही
गुलाब के फूल को
माँ के बालों में सहेजते हुए

लेकिन मैंने देखा है पापा को
किचन में रोटियाँ बनाते हुए
और माँ की परवाह करते हुए

और मैंने जाना है
प्रेम की पूर्णता जताने से नहीं
बल्कि एक-दूसरे के लिए जीने से होती है .!