अब मुझे तुम पहले की तरह याद नही रहती| ( Happy Valentine’s day )

अब मुझे तुम पहले की तरह याद नही रहती|
ना ही याद रह गयी हैं मुझे हमारे बीच की
कभी ना ख़तम होने वाली बातें|

मैं कुछ कुछ भूलने लगा हूँ तुमको
कुछ अपनी मुफ़लिसी में,
कुछ यूँ ही मजबूरी में|

वो गाहे बगाहे तुम्हारे नाम का ज़िक्र,
जान बूझ कर निकालना,
वो जिससे की तुम्हारी कोई ख़ैरियत की
खबर मिले…
वो डायरी में लिखा तुम्हारे उपर कोई शेर
और हर गाने में तुमको तलाशने का हुनर
कुछ कुछ भूलता जा रहा हूँ मैं|

मैं सोचता हूँ तुम्हारे बारे में कभी कभी
तो बस याद आती है तुम्हारी एक धुंधली सी तस्वीर
तुम्हारी आवाज़ भी अब ठीक ठीक पहचान नही सकता|

वो जो की तुमने एक वादा लिया था —
की अब मैं भूल जाऊं तुम्हें
वो जो की मैने एक वादा किया था —
कि कभी भुला नही सकता तुम्हें
अब कुछ कुछ भूल गया हूँ उस वादे को भी |

तुम्हारा वजूद सिमट कर रह गया है,
किसी ताले लगे सूटकेस की
एक पुरानी डायरी के कुछ पन्नो में,
किसी पुराने दोस्त के तकल्लुफ में,
और मेरे नये प्यार को खुश रखने के
साज़ो सामान के राज़ में|

ना याद है ज़ुबान पे रखा हुआ तुम्हारा नंबर,
ना ही याद है तुम्हारी गली के बेवजह चक्कर|
अब नही हो पाता तारों के साथ जागना बातों बातों में |
तुम्हारी आवाज़ सुनने की अब कोई बेताबी नही रहती,
ना ही बेताब रहता है दिल किसी दुआ की मंज़ूरी में|

मैं तुमको हर रोज़ थोड़ा थोड़ा भूलता जाता हूँ,
साथ में कहीं कहीं
अपना हिस्सा भी तुम्हारे साथ
पीछे टुकड़ा टुकड़ा ही सही, पर छोड़ता जाता हूँ|

वो बस वाली लड़की

बस का सफ़र बड़ा ही मजेदार होता है। हाँ हर बार तो नहीं पर कभी कभी इतना की वो हमारे दिलो-दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ देता है। हा मुझे कुछ ज्यादा पसंद नहीं है , बस में यात्रा करना !

एक ऐसी ही बस यात्रा मेरी भी थी। मै अपने शहर से पातेपुर जा रहा था। मेरी ट्रैनिंग चल रही थी | मै जल्दी से बस-अड्डे की तरफ भागा। माँ के तिलक करने और दही-चीनी खिलाने की रस्म निभाने में मुझे पहले ही देर हो चुकी थी। अब हमारी माँ हमारी इतनी परवाह जो करती है, अपने बेटे को ऐसे कैसे जाने दे देती। जैसे तैसे मै बस-अड्डे पहुंचा। देखा तो एक बस कड़ी थी और कंडक्टर अपनी फटी आवाज़ में पातेपुर पातेपुर चिल्ला रहा था। खैर मै टिकट लेकर बस के अन्दर पहुंचा। एक ही सीट खाली थी, वो भी एक सुन्दर सी कन्या के साथ वाली। देख के मन गद-गद हो उठा, फिर भी अपनी ख़ुशी को दबाते हुए मै अपना सामान ऊपर टिका कर खुद सीट पर टिक गया। मन में एक दबी से मुस्कराहट उच्छालें मार रही थी। उसका ध्यान तो बस खिड़की के बाहर कपडे के दूकान में टंगे एक पर्स पर था। बहुत मिन्नतें करने के बाद बस को आगे बढाने का कार्यक्रम सुरु हुआ। बस अपना पूरा जोर लगाते हुए,चीखते-चिल्लाते हुए आगे बढ़ने लगी। कुछ दूर बस चली ही थी की उसे रुकना पड़ा। कुछ अतरंगी से लोग ऊपर चढ़े। सामने ही आ के खड़े हो गये। मुझे क्या लेना था मेरी निगाह तो उसके चेहरे के दर्शन करने को लालायित थी। उसका ध्यान मेरी तरफ गया, शुक्र है खुदा का। मैंने अपने अन्दर की सारी ताकत झोकते हुए उस से पूछे “आप भी पातेपुर जा रहे हो?”। उसने हाँ में सर हिलाया। मेरे अन्दर की हिम्मत बढ़ी, मैंने पूछा “आप का नाम क्या है?। उसने मुझपर एहसान जताते हुए कहा “रेखा”। बातों का सिलसिला चलता रहा, बस भी चलती रही। इसी बीच एक स्टॉप आ गया, मेरे बगल की सीट खाली हुई। चार पूर्ण रूप से थके-हारे लोग ऊपर आये। मेरे बगल की सीट पे बिराजमान हो गये। पर उन्हें सारी सीटें साथ में चाहिए थी सो कंडक्टर ने आ के हम दोनों से गंभीर रूप से कहा” भैया आप दोनों पीछे चले जाइए न, चूँकि इनकी तबियत खराब है तो इन्हें साथ में बैठना है”। बीमारी की बात सुन हम तरस खा के पीछे चले गए। बस एक बार फिर आगे बढ़ी। हमारी बातो का सिलसिला भी बढ़ता गया। हमारी अच्छी-खासी दोस्ती हो गयी थी। मैंने सोचा चलो एक दोस्त बन गया। ठंडी हवाओं के कारण उसे नींद आने लगी, वो हमारे कन्धों पर ही सर रख के सो गयी। एक बार फिर से मन में लड्डू फुटा। अभी उसका सर हमारे कन्धों पर अच्छे से पहुंचा भी नहीं था की एक बार फिर से बस रुकी, कुछ मरियल से लोग फिर नज़र आने लगे। हरकतों से मुझे अंदाज़ा हो गया की ये भी बीमार आदमी पार्टी की सदस्य हैं। एक बार फिर से कंडक्टर का निशाना हम बने। इस बार हमसे हमारी सखी के साथ बिलकुल पीछे जाने की गुजारिश की गयी। झल्ला के हमने चिल्ला के बोला “अरे भाई बस चला रहे हो की एम्बुलेंस। कहाँ से इतने सारे बीमारों को पकड़ लाये हो”। लड़की के कहने पे हम शांत हो के पीछे चले गए। हमारी बाते फिर से आगे बढ़ी हमने पूछा “फेसबुक यूज़ करती हो” उसने कहा “हाँ”। हमने फटाफट फ़ोन निकाल के उसको फ्रेंड-रिक्वेस्ट भेजा। उसने भी उसी गति से उसे स्वीकार किया। हमलोग पातेपुर पहुँचने वाले थे। हमने सोचा की अब फेसबुक के भरोसे बैठे तो नहीं रह सकते ना, सो क्यों न उस से उसका फ़ोन-नंबर लिया जाए। हमने अपने अन्दर की समूची ताकत झोंक के उस से उसका नंबर मांगने की हिमाकत भी कर डाली। उसने धीरे से हमारी तरफ अपना चेहरा घुमाया, अपनी आँखों को मेरी आँखों के अन्दर झांकते हुए बिन बोले ही ऐसे भाव जताए जैसे मैंने उस से उसका नंबर नहीं उसकी दोनों किडनियां मांग ली हो। उसी क्षण हमें हमें अहसास हुआ की कैसे एक औरत दुर्गा और काली का रूप लेती होंगी। मैंने धीरे से अपना सर दूसरी तरफ घुमाया और उधार ही छोड़ दिया। उसने फिर कंधे पे थपथपाया और अपना फ़ोन मेरे हाथ में देते हुए कहा इस से अपने नंबर पे फ़ोन कर लो। एक पल को ऐसा लगा जैसा वो अपना नंबर नहीं बिल गेट्स की सारी सम्पति मेरे नाम कर रही हो। मैंने उसके फ़ोन से खुद को ही फ़ोन किया, धीरे धीरे चीखता हुआ मेरे मोबाइल गाने लगा “कैसे मुझे तुम मिल गयी, किस्मत पे आये न यकीं”। मैंने फ़ोन कटा और उसका नाम अपने फ़ोन में “बस वाली” के नाम से सेव कर लिया।धीरे धीरे बस चरमराते हुए बस रुकी। सभी धीरे-धीरे उतरे। मै भी उतर के अपने घर को जाने लगा की उसें पीछे से आवाज लगायी ”फ़ोन करते रहना’। मैंने हाँ में सर हिलाया और आगे बढ़ता चला गया। बस इतनी से थी मेरी बस की यात्रा।

#nilesh

तुम क्या गयीं सारी खुशियाँ चली गयीं,

तुम क्या गयीं सारी खुशियाँ चली गयीं,
मन तो उदास होता आज भी है।

आँखों में आँशू दिखते नहीं ये और बात है,
पर तेरी याद में हर पल ये दिल रोता आज भी है।

साथ बिताये थे बैठकर जो लम्हे ,हमने, कभी एक साथ
धुंधली पड़ गयी उन यादों को ,
आंसुओं से धोता ये दिल आज भी है।

चांदनी रातों में झील के किनारे बैठकर ,
सुनी थी हमने ,तेरी चूड़ियों की खनखनाहट।

तेरी पायलों की छनक से निकले हुए उस राग को ,
सूखे होठों से हरपल गुनगुनाता ये दिल आज भी है।

किसी जहरीली नागिन सा बलखाता तेरा बदन ,और,
मदमस्त तेरे होठों से पिया था ,हमने कभी तेरा जहर।

नीलिमा नही आती मेरे बदन पर कभी फिर भी,
तेरे जहर के नशे में ये दिल ,झूम जाता आज भी है।

अरे ! तुम तो चले गए और जाते हुए मुझको,
क्यों इस शराब का सहारा दे गए ।

जब पीता हूँ इस गरज से कि पिऊंगा ,रात भर ,
और कोसुंगा तेरे इश्क़ को।

बस देख कर तेरी तस्वीर को न जाने क्यों,
हर बार मेरे हाथ से पैमाना, छूट जाता आज भी है।।

#Nilesh

जब से इन आँखों ने , देखा है तुम्हे।

जब से इन आँखों ने ,

देखा है तुम्हे।

आँखों में तुम,

सांसो में तुम,

बातो में तुम,

तुम ही तुम रहती हो।

रहने लगी हो तुम।

मेरे ख्यालो में,

मेरे जज्बातों में,

मेरे कामो में,

तुम ही तुम रहती हो।

रहने लगी हो तुम,

मन में ,

तन में,

आत्मा में,

तुम ही तुम रहती हो।

रहने लगी हो तुम।

मेरे एहसास में,

मेरी प्यास में,

मेरे इंतज़ार में,

तुम ही तुम रहती हो।

रहने लगी हो तुम।

मेरी चाहत में,

मेरी दुआओ में,

पर तुम्हे पता नही।

जब से इन आँखों ने ,

देखा है तुम्हे।

तुम ही तुम रहती हो।

करवा चौथ की हार्दिक बधाई

ऐ चांद क्या समां हैं तेरा, कि वो पलकें बिछाए
तेरा इतज़ार कर रही होगी…

और मोहब्बत की नुमाइश ही कुछ ऐसी है कि वो
हाथो में मेहंदी लगा कर अपने साजन का दीदार कर रही होगी ..।

ये तुम भी कबूल कर लो ।।।

तेरे जिस्म को देख कर ही तुमसे मोहब्बत हुई थी , कबूल करता हूं
पर तेरे सिवा आंखो को किसी पर ठहरने नहीं दिया , ये तुम भी कबूल कर लो !

जिस्म मेरा जब भी मचलता है जिस्म से मिलने को , पर सिर्फ तेरे जिस्म से , कबूल करता हूं
किसी और को तो छूने की भी हसरत नहीं रखता, ये तुम भी कबूल कर लो !

झगड़ा करता हूं , नाराज़ भी हो जाता हूं , पर तुम मना लोगी सिर्फ इसीलिए, कबूल करता हूं
किसी रोज तुम रूठती तो दिल तेरे क़दमों में रखकर माना लूंगा , ये तुम भी कबूल कर लो !

निलेश नासमझ है, थोड़ा नादान है , कबूल करता हूं
बात तेरी खुशी की हुई तो खुद को तुझसे जुदा कर जाऊंगा, ये तुम भी कबूल कर लो ।।।

मैंने उसे भुला दिया ।

Kisi ne aaj uhi puchh liya humse ki yaar tum use bhulte ja rahe ho..
Na ab uski zikar hoti hai.. or na hi bat.
Maine bas itna hi kha…

O Wakt tha.. gujar gaya..
The kabhi hum bhi diwane uske..
Bas.. ab afsos to bas itna hai..
O bewafa ho gaye dekhte dekhte.

Aisa nhi ki pyar nhi tha..
Pyar to dono trf se tha..
Bas yahi hua
वो अमीर लड़की थी मैं गरीब,,,
क्या करता… ???
अमीर दिखने को ब्रांडेड जूता पहन लिया..😭😭😭

Or.. jha tak bhulane ki bat hai.. dost .
To mere ghar pe koi or bhi tha.. jo mujhse jyada ye chahate the.. ki o mere ghar pe aaye..

Koi nhi.. thi majbooriya unki o.. nhi aaye.. humare pass..
Chalo koi bat nahi Sanam.
Humne bhi Samjhi aapki majbooriya.

Fark to tab para jab o budhe inshan gujar gaye.. or aapka Ek Call tak n aaya..
Chaliye koi nhi..

Pahle Yaad , or bhulane ki koshish kiya karte the…

Ab to koi aapse wasta hi nhi..

Nilesh

बस इशारा कर दिया करो

सुनो, बता ना सको अल्फाज़ो में बोलकर
तो इशारा कर दिया करो
मैं पढ़ लेता हूँ आपकी आँखों को
बस इशारा कर दिया करो

दिल जब भी करे,करने को शैतानियां
जुल्फों को अपनी खुला छोड़ दिया करो
शरमाते हो आप,तो शुरुआत मैं कर दूँगा
आप होंठो को लाल करके, इशारा कर दिया करो

प्यास जब भी लगे पीने की मुझको,
जीभ दांतों मे लेकर दबा दिया करो
होंठ होंठो पर रखकर पिलाऊंगा जाम मोहब्बत का,
आप तिरशी सी निगाहों से मुझे, इशारा कर दिया करो

तड़फ रहा हो जब भी जिस्म,जिस्म से मिलने को
सामने आकर हमारे अंगड़ाईया कर दिया करो
अपने हाथ से आज़ाद करू कपड़ो से आपको ,अगर चाहत हो ऐसी
बस पल्लू गिरा कर नीचे ,थोड़ा सा इशारा कर दिया करो

ये सफर जो ज़िन्दगी का है,तूफान आते रहेंगे इसमें
साथ जियेंगे अच्छे बुरे वक़्त को,आप मुस्कुराकर हिम्मत दे दिया करो
डर जब भी लगे ,हौसला जब भी टुटे
आगोश में भर लूँगा, बाहें फेला कर इशारा कर दिया करो

तुम्हारा हुँ ,तो सिर्फ तुम्हारा ही हुँ
दिल अपने को ये बात समझा दिया करो
सुनो,बहुत दिल करता है मेरा सुनने की आपको भी
ज्यादा न सही तो, तीन लफ्ज़ ही” निलेश ” के लिए बोल दिया करो..।

#निलेश