तुम बिखरे हुए बालो सी, खेत की हरियाली सी, शरारत की बाली सी, चाय की मीठी प्याली सी, पर तुम जैसी भी हो मेरी हो।
तुम से मोहब्बत करनी नहीं पड़ी, बस हो गई, हां थोड़े बहुत नखरे है, पर ठीक है मैं संभाल लुंगा।
हम किसी इंसान से कितना कम मिलते हैं, पर वो इंसान हमारे कितना करीब आ जाता है? और फिर उस इंसान में कोई कमी नहीं दिखी, बस दिखी है तो खूबियां ।
फिर शायद उसकी कमी की भी आदत सी हो जाती है, जैसे किसी का बेवजह गुस्सा भी अच्छा लगने लग जाता है,
और फिर कोई पुछ भी ले ना की हमसे, की सुनों वो कैसी है, तो बस वो जैसी है मेरी है, निकलता है।
तुम लोग सोचते होंगे ना वो कैसी है?
आओ बताओ तुम्हें वो कैसी है, उम्म उसका गुस्सा रिमझिम बारिश जैसा है, कब आए और कब जाए पता ही ना लगता है। उसके बाल किसी झरने जैसे लगते हैं, जिनपर मेरा बस अपनी उनगलिया फिरने का मन करता है, उसके होठ किसी गुलाब के तरह है, हां कभी उने चूमा नहीं मैंने। वो किसी रब से मांगी दुआ है, वो किसी शरब सी है, जिसका नशा मुझ पर और मेरे अल्फाज़ों पर हमेशा रहता है।
वो पत्थर सा दिल नहीं, किसी मासूम बच्चे का दिल रखती है, नादान है थोड़ी, पर शैतानिया हज़ार करती है। वो मीठी चाय सी है, वो मेरा ख़्वाब है, वो लाजवाब है, जो मेरी कहानियां मैं बस जाए, वो सिर्फ खूबसूरत नहीं, वो तो हुश्न के बारे में लिखी जाने वाली कोई किताब है।
उसके जिस्म से ज्यादा उसकी रूह दीवाना बनाती है, और वो कभी पूछती भी नहीं, की मैं ऐसी हूं , मैं वैसी हूं, या मैं कैसी हू,
हां पर अगर जो कभी पूछेगी ना वो मुझसे तो उससे करीब खीचके यही कहूंगा ।