
युद्ध से ज्यादा
भयावह होता है,
क्योंकि इसे करने
आप किसी और
को नहीं भेज सकते।
इसलिए समाज प्रेम से डरता है।
इसलिए समाज में
बस युद्ध का उन्माद होता है
युद्ध खुले मैदान होता है।
और होठ चूमने की खातिर
कमरे के दरवाजे लगाने पड़ते हैं।😘
✍️…Nilesh
उसकी “typing…” पर, खुशी से काँपती मेरी उँगलियाँ.. इश्क़ है,
उसकी “New profile pic” को मिनटों तक एकटक झाँकती पलकों की पंखुड़ियाँ.. इश्क़ है,
गुफ्तगू करने की अनगिनत ख्वाहिशों के बीच,
“online” होकर भी चीखती खामोशियाँ.. इश्क़ है..
जरा सी आहट पे, फोन पकड़ कर बैठ जाना, वो “notification” की टनटनाती घंटियां.. इश्क़ है..
कैसे हो? पूछने पर.. “iam fine” बताना लिख कर मिटाना, मिटा कर छिपाना, वो “draft” में बेबस पड़ी अनकही अर्जियाँ.. इश्क़ है..
उसका नाम सुन कर धड़कनों का बढ़ जाना,
और उसका नाम सुना कर दोस्तों की मन-मर्जियाँ.. इश्क़ है..
अनंत तक चलने वाली “convo” में..
“Hmm” और “Hanji” की तल्खियाँ.. इश्क़ है..
“Call” आने पे बावला हो जाना,
अलाना.. फलाना.. बतियाना दिल ही दिल में खिलखिलाना, वो बच्चों सी खुशियों वाली किलकारियाँ.. इश्क़ है..
हर रोज मुलाकात के लिए पूछना,
ना मिल पाने पर दिल ही दिल रो लेना और उसको महसूस तक ना होने देना… इश्क़ है..
मशरुफ़ियत कितनी भी भारी पड़े कैफ़ियत पूछने पर, बस इक बार “Last seen” देखने वाली बेचैनियाँ.. इश्क़ है..
सुबह सबसे पहले उठकर ” call log ” में उसका “call ” देखना….”इश्क” है..
हर सुबह की ” राधे राधे ” और देर रात की “Good Night ” इश्क़ है…
“इश्क़ है”, बस बेइंतहा इश्क़ है..
#Nilesh