छूने से भी फैल जाने वाली इस बीमारी के दौर में, सांसों से सांस देने की हिम्मत करना मूर्खता तो है मगर मोहब्बत है, बेबसी है, तड़प है; अपनों को बचाने की आखिरी कोशिश है। ऐसे हालात में खुद के जान की परवाह कहाँ होती है।
*इसे देखकर दिव्य प्रकाश दुबे जी एक पंक्ति यार आ रही है
“साथ रोना, साथ हँसने से ज़्यादा बड़ी चीज़ है।”