ओ मुझसे दूर चली गई
मै क्रिकेट खेल रहा था, time ( above 1pm , month Feb date 21.)
तभी उसका call आया , उसकी आवाज थोड़ी सहमी सहमी सी थी !
मैंने पूछा कुछ हुआ है क्या , उसने कहा नहीं सब ठीक है।
थोड़ी देर बात हुई , फिर उसने जो कहा, ओ मुझे अंदर तक मार गया।
ओ बोली मेरी शादी होने वाली है। अब मै तुमसे बात नहीं कर पाऊंगी , और ना ही तुमसे शादी कर पाऊंगी ।
ये सुन कर मानो मेरी तो जान ही निकाल गई !
मैंने उससे पूछा तुम जब मुझसे प्यार करती हो तो फिर शादी अलग क्यों, तो उसने कहा मेरी शादी घर वालो ने तय की है और। मै माना नहीं कर सकती । वह रोती हुई बोली
मैंने उसे कहा …
“और मेरा? मेरा क्या होगा? तुमको पता है न तुम्हारे सिवा मेरा कोई नही है. तुम्हारे बिना मैं जीने का सोच भी नहीं सकता हूँ. और तुम इतनी आसानी से बोल दी शादी हो रही हो. एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा तुमने.”
“जो हमारे बिच था एक नादानी था. क्या करना था हमे यह पता नहीं था. गलती सभी से होती है हमसे भी हो गई. उसका मतलब क्या करे तुमसे शादी कर ले. जहाँ मेरे घर वाले करेंगे मैं वही करुँगी.”
उसके चेहरे के भाव बदल गया था. मेरे भी चेहरे का भाव बदल गया था. फर्क बस इतना था कि मैं बाहर से हारा हुआ लग रहा रहा था और वह अनदर से..
फिर मैं बोला …
“हम दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमे खाई थी. यही था न वह जगह जहाँ तुमने बोला था “तुम्हारे सिवा मेरा कोई और नहीं हो सकता. जो हो तुम्ही हो और तुम्ही रहोगे. मुझे तुम्हारे सिवा इस दुनिया का कुछ नहीं चाहिए.”
मेरे बातों कुछ इस तरह सुन रही थी मानो पहली बार मीली हो।
कुछ देर के बाद वह तोडी तेज अवाज मे बोली …
“उस टाइम पता नहीं था क्या बोल रही हूँ. गलती हो गई थी. और हाँ मुझे call भी मत करना. *क्यों उनको पसंद नही है मैं किसी से बात करू.”*
मैंने उसे मनाना चाहा पर उसने call काट दी , मैंने फिर बहुत बार कॉल करने की कोशिश की पर उसने कॉल नहीं उठाया ।
कुछ दिन बाद ( शाम का समय था )
मैंने उसके घर के तरफ देखा. चारो तरफ एक जगमगाती लाइट जल रही रही थी. चहल-पहल ज्यादा लग रहा था. घर और आप-पास के पेड़ो में लगे लाउडस्पीकर में बड़े जोर-जोर से हिंदी गाने बज रहे थे.
मै वहां से चला आया । मैं नहीं चाह रहा था कोई मुझे देखे और मेरे दर्द को. जिसे देखना था वह अपने खुशियों में व्यस्त था. गाने मेरे दिल में तीर के जैसे चुभ रहे थे. अंदर से एक बेचैनी खाए जा रही थी. क्या करू, न ही दिल बस में था न मन. धडकन भी अपनी सबसे तेज रफ्तार में थी. जैसे आज ही सब खत्म कर देना है. एक पल को मन किया चले जाऊ उसके पास और पुछू “क्या हक़ है. तुमको किसी को रुलाने का.”
उसकी शादी उसके घर के पास के एक होटल में होने वाली थी ।
बारात धीरे-धीरे होटल के तरफ बढ़ रहा था. आवाज की तेजी बढती ही जा रही थी. जैसे मेरे ही घर के तरफ आ रही हो. बाजे वाले की डंके की चोट में वह जैसे चीख-चीख कर रही हो -“मैं जा रही हूँ. तुमको छोर कर. मेरा शादी हो रहा. मेरा कोई हो गया है. मैं अब तुम्हारी नहीं हूँ. अब मेरे पास कोई और है.”
मै वहां से और दूर चला गया ।
मैं इन शोरो से दूर जाना चाहता था बहुत दूर. ओ अप्रैल की अंधरी रात में कहा जा रहा हूँ पता नही चल रहा था. बस चले जा रहा था. गर्मी में भी मुझे ठंड लग रही थी . मैंने अपना कदम और तेज कर दिया.. मैं जितना दूर जा रहा था आवाज मेरा उतना ही पीछा कर रही थी.
अब मैं गावं से बहार आ चूका था. आवाज पहले से और साफ़ आ रहा था. शादी का रस्म चल रहा है. मैंने दोनों कान बंद किया और वही बैठ गया. निचे क्या है क्या नहीं क्या फर्क पड़ता है. अचानक मेरा मेरा मुह खुला और मैं चीख-चीख कर रोने लगा. और तेज और तेज. कितने दिनों से दबा रखा इन आंसुओ को. आज जी भर के बहार निकलना चाहता था. वहाँ न कोई सुनने वाला था कोई कुछ कहने वाला. रोता ही रहा- रोता ही रहा. जब तक सारे जहर भरे आंसू बाहर नहीं निकल जाए।
बस बैठा -बैठा ईशवर से यही प्रथना कर रहा था कि कोई अभी भी आए और कहे कि वह मेरे लिए सबको छोड़ कर आ रही हैं
अब तो बहुत देर हो चुकी थीं…. वह मझसे दुर चली गई थी।