Mai Bhi utna hi jala tha. ( Hindi shayri )

मैं भी उतना ही जला था उसके संग …… जितना कि वो ,
मगर फिर भी वो जाते-जाते मुझ पर ……… खुदगर्ज़ी की तोहमत लगा गयी ।

मैं भी उतना ही तड़पा था उसके संग …… जितना कि वो ,
और वो मुझे उस तड़प की ……. कोई और वजह बता गयी।

यूँ तो उसने और मैंने कसमें खाई थीं ………. साथ चलने की ,
जिसमे ना कोई वादे थे और ना कोई रस्में …… साथ जीने-मरने की ।

मैं भी उतना ही संभला था उसके संग …… जितना कि वो ,
मगर वो मेहरबाँ मुझे मेरे बहने की ……… एक नई वजह बता गयी ।

साथ उसका और मेरा कुछ पलों का ही सही ……… तो क्या ,
हर उस साथ में मैंने अपने फ़लसफ़े का ………. इनाम पाया था ।

मैं भी उतना ही गिरा था उसके संग …… जितना कि वो ,
और वो हर बार मेरे गिरने पर ……. अपनी जीत का जश्न मना गयी ।

अफसानों को बनते हुए कई साल लग गए ………. ओ साथी ,
मगर हर साल मेरे हर एक अंग का …… वो भरपूर लुफ्त उठा गयी ।

मैं भी उतना ही छिपा रहा था उस लुत्फ़ से …… जितना कि वो ,
मगर वो मुझे उस लुत्फ़ के मयकदे का ……… एक साक़ी बना गयी ।

जवाँ वो भी थी , जवाँ मैं भी था ……… मगर उस जवानी की कसक कुछ और थी ,
इसीलिए वो मेरी जवानी पर अपनी तड़प लुटा ………. मुझे और ज्यादा जवाँ बना गयी ।

मैं भी उतना ही लुटा था उसके संग …… जितना कि वो ,
मगर वो मेरे लुटने पर ……. मज़े लेने का एक नया विशेषण लगा गयी ।

दिल~ए ~ बर्बादी का नया शौक़ ………. मैंने पाल कर कुछ गुनाह ना किया ,
वो हर बार मेरे बर्बाद दिल को …… आबाद करके कसम निभा गयी ।

मैं भी उतना ही जगी थी उसके संग …… जितना कि वो ,
मगर वो हर बार मेरे जगने पर ……. एक हवस का तमगा लगा गयी ।

मैं भी उतना ही जला था उसके संग …… जितना कि वो ,
मगर फिर भी वो जाते-जाते मुझ पर ……… खुदगर्ज़ी की तोहमत लगा गयी ।

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